उमस भरी दोपहरी में

उमस भरी दोपहरी में
गर्मी की चादर ओढ़े धूप टहल रही थी
वो बादल का टुकड़ा आया
झाक के देखा उसने, आँखों के सूखे मोती
दौड़ा भागा , कुछ आवाज़ लगाई
लू से भारी हवा ठंडक बन लहराई
छाव का शामियाना धरा पर सज़ा
हज़ारों बादलों का जमघट जो लगा
टापुर टापुर बूंदे बड़ी बड़ी झूमको सी
राह पर गिरती , माटी से मिलती
खिड़की खुलने से पहले ही
नयनो के रास्ते मन बाहर था
आवारा बरसातो में भीगता
धूल गया पूरा के पूरा
चमकता नयी कोरी स्लेट सा
नयी हरियाली के उगम में
खुद को समेटता……….

32 टिप्पणियां

  1. जुलाई 9, 2009 at 10:13 अपराह्न

    धूल गया पूरा के पूरा
    चमकता नयी कोरी स्लेट सा
    नयी हरियाली के उगम में
    खुद को समेटता………

    -बहुत सुन्दर चित्रण!!

  2. gaurav said,

    जुलाई 9, 2009 at 11:09 अपराह्न

    badiya lika aapne…

  3. M Verma said,

    जुलाई 9, 2009 at 11:16 अपराह्न

    उमस भरी दोपहरी में
    गर्मी की चादर ओढ़े धूप टहल रही थी
    खूबसूरत चित्रण

  4. जुलाई 10, 2009 at 2:12 पूर्वाह्न

    बेहद सुंदरतम भावों को संप्रेषित किया आपने. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

  5. shyamalsuman said,

    जुलाई 10, 2009 at 2:58 पूर्वाह्न

    रचना अच्छी लगी।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

  6. संगीता पुरी said,

    जुलाई 10, 2009 at 5:07 पूर्वाह्न

    सुंदर भावों की बेहतरीन अभिव्‍यक्ति !!

  7. जुलाई 10, 2009 at 5:13 पूर्वाह्न

    लू से भारी हवा ठंडक बन लहराई
    छाव का शामियाना धरा पर सज़ा
    हज़ारों बादलों का जमघट जो लगा
    टापुर टापुर बूंदे बड़ी बड़ी झूमको सी
    राह पर गिरती , माटी से मिलती

    waah..ati sundar charitr chitran kiya aapne barish ka..
    bahut sundar aur bhavpurn kavita.
    hardik badhayi..

  8. rashmi prabha said,

    जुलाई 10, 2009 at 6:34 पूर्वाह्न

    एक बहुत ही अच्छी रचना….

  9. जुलाई 10, 2009 at 7:28 पूर्वाह्न

    वाकई, अब तो दुखदायी हो गयी है। अब तो इस उमस से राहत मिलनी ही चाहिए।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

  10. digamber said,

    जुलाई 10, 2009 at 7:37 पूर्वाह्न

    वाह………….उमस भरी दोपहरी……….लू से झुलसी हवा को सच में महका गए आपकी रचना………. बूंदों से भीगी आपकी रचना लाजवाब है

  11. aadityaranjan said,

    जुलाई 10, 2009 at 8:04 पूर्वाह्न

    कुछ बारिश के छिटें आज यहां गीरें है…
    सुन्दर अभिव्यक्ति

    रंजन

  12. जुलाई 10, 2009 at 8:11 पूर्वाह्न

    धूल गया पूरा के पूरा
    चमकता नयी कोरी स्लेट सा
    नयी हरियाली के उगम में
    खुद को समेटता………
    बहुत सुंदर रचना, आप की कविता से ही मुझे एहसास हो रहा है कि कितनी गर्मी ओर उमस होगी भारत मै, ओर लोग कितने बेवैन हो रहे है बिन बरसात के…. ओर हमारे यहां बरसात ने नाक मै दम कर रखा है, ओर सर्दी भी थोडी थोडी हो रही है.कामना करत हुं भारत मै भी जल्द बरसात हो

  13. जुलाई 10, 2009 at 8:12 पूर्वाह्न

    बहुत सुंदर.

  14. ranju said,

    जुलाई 10, 2009 at 8:45 पूर्वाह्न

    उमस ही उमस है सही में सुन्दर कविता लिखी है आपने

  15. जुलाई 10, 2009 at 2:04 अपराह्न

    जैसे दि‍ल की बात कह दी। बहुत सुंदर।

  16. anil said,

    जुलाई 10, 2009 at 7:18 अपराह्न

    बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने…..!

  17. Saagar said,

    जुलाई 11, 2009 at 9:54 पूर्वाह्न

    टापुर टापुर बूंदे बड़ी बड़ी झूमको

    tukbanki se sath bahut dino baad koi kavita dekh raha hoon. achcha laga khas kar upar ki line bhi tapur-tapur bol-chal ki pyari bhasa. likhti rahiye aur achcha likh sakti hai aap.

    Regards,
    Saagar

  18. Razi said,

    जुलाई 11, 2009 at 10:55 पूर्वाह्न

    जैसे दि‍ल की बात कह दी। बहुत सुंदर।

  19. Alpana said,

    जुलाई 11, 2009 at 4:07 अपराह्न

    ‘खिड़की खुलने से पहले ही
    नयनो के रास्ते मन बाहर था’

    क्या बात है!
    बहुत अच्छा लिखा है.
    अच्छी कविता है महक.
    बहुत दिनों बाद आप की यह कविता आई..
    अच्छा लगा.

  20. raj said,

    जुलाई 12, 2009 at 7:06 पूर्वाह्न

    खिड़की खुलने से पहले ही
    नयनो के रास्ते मन बाहर था’…..really its very nice poem full of emotions…

  21. जुलाई 12, 2009 at 8:23 अपराह्न

    खिड़की खुलने से पहले ही
    नयनो के रास्ते मन बाहर था
    आवारा बरसातो में भीगता
    धूल गया पूरा के पूरा
    चमकता नयी कोरी स्लेट सा
    नयी हरियाली के उगम में
    खुद को समेटता……….

    वाकई मन को किसी खिडकी की ज़रुरत नहीं होती । आपके सुन्दर मन के लिए आपको बहुत बधाई । शेष …

  22. जुलाई 13, 2009 at 10:18 पूर्वाह्न

    bahut sundar…
    खिड़की खुलने से पहले ही
    नयनो के रास्ते मन बाहर था

  23. जुलाई 13, 2009 at 12:30 अपराह्न

    महकजी

    टापुर टापुर बूंदे बड़ी बड़ी झूमको सी

    नयनो के रास्ते मन बाहर था
    आवारा बरसातो में भीगता

    सुन्दर महक लिए हुए आपकी कविता द्वारा बरसात मै भिगने का सुन्दर अनुभव कर आऐ। मोसम भी है दस्तूर भी है आपके शब्दो को सहराने का अवस भी है।

    आभार/मगलभवो के साथ

    हे प्रभु यह तेरापन्थ

    मुम्बई टाईगर

  24. Neeraj said,

    जुलाई 13, 2009 at 7:06 अपराह्न

    This is a poetic sketching of natural phenomenon…brilliant and brilliantly…

  25. dinesh said,

    जुलाई 14, 2009 at 11:48 पूर्वाह्न

    bhut khub likha hai aapne.

  26. जुलाई 14, 2009 at 9:18 अपराह्न

    उमस भरी दोपहरी में
    गर्मी की चादर ओढ़े धूप टहल रही थी

    खूबसूरत चित्रण…..

  27. Urmi said,

    जुलाई 15, 2009 at 6:14 पूर्वाह्न

    बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!

  28. preeti tailor said,

    जुलाई 16, 2009 at 11:42 पूर्वाह्न

    nishabd ho gayi aaj

  29. renu said,

    अगस्त 15, 2009 at 7:36 पूर्वाह्न

    i dint like the poem.


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