खामोश लौट जाती है लहेरें
किनारों पर कुछ एहसास मिलते है
पल भर का सही ,अटूट रिश्ता दोनो का
अनगिनत सीपियों में
याद बन बिखरता है यहा वहा…….
याद
अगस्त 26, 2009 at 11:38 अपराह्न (Uncategorized)
अगस्त 26, 2009 at 11:38 अपराह्न (Uncategorized)
shyamalsuman said,
अगस्त 27, 2009 at 12:39 पूर्वाह्न
चित्र से शब्दों का और शब्दों से चित्र का अच्छा सम्बन्ध स्थापित किया है आपने महक जी।
समीर लाल said,
अगस्त 27, 2009 at 12:46 पूर्वाह्न
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
vani geet said,
अगस्त 27, 2009 at 1:55 पूर्वाह्न
यही तो …नदी के दो किनारे आपस में मिला नहीं करते …मगर किनारों के बिना नदी भी नदी नहीं होती ..!!
rakesh singh said,
अगस्त 27, 2009 at 1:58 पूर्वाह्न
वाह … बढ़िया लगा | कविता छोटी सही पर है गंभीर |
kshama said,
अगस्त 27, 2009 at 2:27 पूर्वाह्न
छोटी -सी पर अपने अन्दर एक महासागर समेटती रचना !
‘एक विराट सिमट आया,
तूने एक लफ्ज़ भी कहा..’
Asha Joglekar said,
अगस्त 27, 2009 at 3:14 पूर्वाह्न
खरय एक लाट येते अन आठवणींच्े शिंपले ठेवून जाते मागे
Asha Joglekar said,
अगस्त 27, 2009 at 3:15 पूर्वाह्न
खरय एक लाट येते अन आठवणींचे शिंपले ठेवून जाते मागे
कुश said,
अगस्त 27, 2009 at 3:54 पूर्वाह्न
इतने कम शब्दों में कितनी गहरी बात.. ये हुनर बखूबी जानती है आप
Mahfooz said,
अगस्त 27, 2009 at 4:54 पूर्वाह्न
खामोश लौट जाती है लहेरें
किनारों पर कुछ एहसास मिलते है
पल भर का सही ,अटूट रिश्ता दोनो का
अनगिनत सीपियों में
याद बन बिखरता है यहा वहा…….
haan! kuch ehsaas to milte hi hain…….. bhale hi pal bhar ka…….. yaaden hi ek aisi cheez hai …….jinko hum mita nahi sakte…….. koi duster aisa nahi bana hai……. bahut hi sunder kavita……. bhaavpoorna chitra ke saath…….
aapki kavitaon ka intezaar rehta hai……..
Regards…….
Mahfooz
ताऊ रामपुरिया said,
अगस्त 27, 2009 at 5:01 पूर्वाह्न
बहुत सुंदरतम भाव. शुभकामनाएं.
रामराम.
संगीता पुरी said,
अगस्त 27, 2009 at 7:08 पूर्वाह्न
बहुत बढिया !!
zakir ali rajnish said,
अगस्त 27, 2009 at 8:06 पूर्वाह्न
Yaaden hi aslee poonjee hain.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
TSALIIM said,
अगस्त 27, 2009 at 10:51 पूर्वाह्न
SHAANDAAR NAZM.
om arya said,
अगस्त 27, 2009 at 11:17 पूर्वाह्न
बहुत ही सुन्दर भाव……….
Shashi Sudhanshu said,
अगस्त 27, 2009 at 1:00 अपराह्न
बहुत अच्छा लिखा है आपने
प्रवीण शाह said,
अगस्त 27, 2009 at 3:00 अपराह्न
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सुन्दर !!!
लहरों का किनारे से सीपियों के माध्यम से एक अनूठा रिश्ता जोड़ा है आपने…
alpana said,
अगस्त 27, 2009 at 9:43 अपराह्न
bahut sundar mahak!
preeti tailor said,
अगस्त 28, 2009 at 4:27 पूर्वाह्न
aaj bejuban ho gayi ….sipi bankar ret par pade rahne do …lahren fir aayengi
Rewa said,
अगस्त 28, 2009 at 3:41 अपराह्न
first of all the name mehek is soo touching……..and the relation between seep and yaad is too nicely drawn
praney said,
अगस्त 28, 2009 at 8:02 अपराह्न
gud hai
महावीर said,
अगस्त 29, 2009 at 6:43 अपराह्न
बहुत सुन्दर शब्दों में भावों से ओत-प्रोत कविता है.
पल भर का सही ,अटूट रिश्ता दोनो का
अनगिनत सीपियों में
याद बन बिखरता है यहा वहा…..
सुन्दर अभिव्यक्ति!
महावीर
manthan
digamber said,
अगस्त 30, 2009 at 1:25 अपराह्न
VAAH ……. KUCH HI SHABDON MEIN GAHRI BAAT …… SEEDHE DIL MEIN UTAR GAYEE ……