
हसरतो के कमल
आओ आओ सखियों आओ,कुछ राज़ बताना चाहूं मैं
दिल की बगिया में अब के ,नये गुल खिलाना चाहूं मैं |
नींद में जब सोई हुई थी,सपनो में खोई हुई थी
कोई अजनबी दबे पाव आया,उलझी लटो को सुलझाया
उसके लबों की पंखुड़ियों को,हौले मुझ पर बरसया
गुलाबी निशानियाँ रात की,सुबह गालों पर पाउ मैं |
आओ आओ सखियों आओ,कुछ राज़ बताना चाहूं मैं
दिल की बगिया में अब के ,नये गुल खिलाना चाहूं मैं |
वही है जिसको खोज रही थी,जिसके लिए सोच रही थी
कही दूर न था वो मुझ से,उसको अपने दिल में ही पाया
हसरतॉ के कमल पर मेरे,प्यार की दव बूंदे सजाया
मोहोब्बत के मंदिर में उसके,खुद को अर्पण कर आउ मैं |
आओ आओ सखियों आओ,कुछ राज़ बताना चाहूं मैं
दिल की बगिया में अब के ,नये गुल खिलाना चाहूं मैं |