कांच चुभा
लहू गिरा जहा
वहा एक गुल खिला
सुर्ख लाल था उसका रंग
और पंखुडियां
सारी पारदर्शक
कांच के जैसी
=========
किनारे पर गिरी सीपियाँ
अन्थाग सागर समर्पित दोबारा
जब हम
वापस आये
उन में मोती हो
=========
डूबता सूरज बिम्ब
क्षितिज पे अपनी
छटाये छोडता जा रहा
उसके अस्तित्व का प्रमाण
ताकी कल फिर आना है
ये उसे याद रहे …
डूबता सूरज बिम्ब
मार्च 22, 2009 at 5:03 पूर्वाह्न (Uncategorized)
Dr.Manoj Mishra said,
मार्च 22, 2009 at 5:21 पूर्वाह्न
डूबता सूरज बिम्ब
क्षितिज पे अपनी
छटाये छोडता जा रहा
उसके अस्तित्व का प्रमाण
ताकी कल फिर आना है
ये उसे याद रहे …
बहुत खूब क्या बात है
Alok said,
मार्च 22, 2009 at 10:09 पूर्वाह्न
hi alok
Digamber Naswa said,
मार्च 22, 2009 at 10:16 पूर्वाह्न
किनारे पर गिरी सीपियाँ
अन्थाग सागर समर्पित दोबारा
जब हम
वापस आये
उन में मोती हो
teenon की abhivyakti madhur है, anjaane ehsaas हैं teeno में, lahoo से khilte huve pushp से लेकर doobte sooraj के bimb तक और से मुझे सब से mohak लगा
Turning the Wheel said,
मार्च 22, 2009 at 3:27 अपराह्न
कांच चुभा
लहू गिरा जहा
वहा एक गुल खिला
सुर्ख लाल था उसका रंग
और पंखुडियां
सारी पारदर्शक
कांच के जैसी
Bahut sunder mehek. hari hari laal kaanch ki churiyan yaad aa gayi….nayi dulhan ke liye solah singar mein se ek. 🙂
Nishant said,
मार्च 22, 2009 at 4:10 अपराह्न
आप इतने बार मेरे ब्लौग पर आये और आपने इतने सारे प्रेरणास्पद कमेंट्स किये, इसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ!
आपका ब्लौग बहुत-बहुत सुन्दर है. आप कितना सुन्दर लिखती हैं…
राज भाटिया said,
मार्च 22, 2009 at 5:09 अपराह्न
बहुत ही सुंदर लिखा आप ने .
धन्यवाद
Kishore Choudhary said,
मार्च 22, 2009 at 5:24 अपराह्न
क्या जादू जगाया है ? वाह वाह !!
rashmi prabha said,
मार्च 22, 2009 at 6:11 अपराह्न
har kshanikaaon ki apni mohakta hai…..
Jayant said,
मार्च 23, 2009 at 4:28 अपराह्न
Mehek Ji,
Very nicely written.
Thanks,
Jayant
alpana verma said,
मार्च 23, 2009 at 7:41 अपराह्न
sabhi rachnayon mein sundar abhivyakti hai.
magar yah to behad komal si abhilasha lagi–
किनारे पर गिरी सीपियाँ
अन्थाग सागर समर्पित दोबारा
जब हम
वापस आये
उन में मोती हो
rohit said,
मार्च 23, 2009 at 9:13 अपराह्न
डूबता सूरज बिम्ब
क्षितिज पे अपनी
छटाये छोडता जा रहा
उसके अस्तित्व का प्रमाण
ताकी कल फिर आना है
Bahut Khub Mehak…
Suraj to aayega….
Per Uska Kiya
Jiska Suraj Dhoob gaya…
Raat Jiski Khatm Hoti nahi
Yaa Intzaar Ki Raat Lambi ho gai….
rohit
chandra mohan gupta said,
मार्च 24, 2009 at 4:04 पूर्वाह्न
जब हम
वापस आये
उन में मोती हो
कितनी आशावादी, प्रेरणादायक सोंच…………………
सुन्दर रचना.
चन्द्र मोहन गुप्त
preeti tailor said,
मार्च 24, 2009 at 8:16 पूर्वाह्न
suraj ka kya aana hota hai ,
khud ka sona aur khud hi jagna hota hai,
sota nahin kabhi shayad vo kabhi isi liye,
sandhya ko dekho ya usha ho uski aankhon ka rang laal hota hai ….