ऐसी हर सहर कीजिए
नींद खुले देखूं तुम्हे ऐसी हर सहर कीजिए
दिल में छुपाए कुछ राज़ हमे खबर कीजिए |
पैगाम–ए–मोहोब्बत भेजा है खत में नाज़निन
कबुल हो गर तोहफा–ए–इश्क़ हमसे नज़र कीजिए |
खुशियाँ बाटने यहा चले आएँगे अनजान भी
किसी के गम में शरीक अपना भी जिगर कीजिए |
आसान राहों से जो हासिल वो भी कोई मंज़िल हुई
खुद को बुलंद करने तय मुश्किल सफ़र कीजिए |
दुश्मन–ओ–जहाँ के तोड़ रहे है मंदिर मज़्ज़िद
अपने गुनाहो की माफिए–ए–अर्ज़ अब किधर कीजिए |
लहू के रिश्तों से भी मिले अब फरेब ओ– खंजर
परायों से अपनापन नसीब वही बसर कीजिए |
ज़मीन समेट्ले बूँदो से वो बादल है प्यासा
आसमान झुके पाने जिसे प्यार इस कदर कीजिए |
गुलाब से सजाए लम्हे भी मुरझाएंगे कभी
यादों में उनकी “महक”रहे ऐसा असर कीजिए |