मई 2, 2008 at 5:03 अपराह्न (shayari)
Tags: aalam, aashiq, aasman, Blogroll, hindi poem, ishq, kavita, khamoshi, love, mehek, mehhekk, mohobbat, nagme, nazar, nazm, pyar, shayari, sher, tarannum
न जाने क्यों
वो ये कैसे सोच लेता है के
उसके हर जज़्बात हमारा दिल समझता है
साथ होकर भी तरन्नुम–ए–खामोशी का साज़
हमे हरदम नागवारा लगता है
कहेने को बीच में अनगिनत बातें राह देखती
वो बस कभी आसमान को कभी हमे तकता है
हालात–ओ–आलम बदलते नज़र नही आते
छेड़ो ना वही आलाप जो रूह में बसता है
न जाने क्यूँ डरती हूँ तुमसे आशिक़ –ए–हयात
अनकहा सा ये लम्हा रेत सा फिसलता है |
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अप्रैल 20, 2008 at 3:59 पूर्वाह्न (shayari)
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कुछ दिल से
१. वैसे तो आपकी हर अदा से वाकिफ़ है दिलदारा
डरते है जब इश्क़ में इम्तेहान देने की बात हो |
२. जब तक न तुमसे बातें हो दिल-ए-ग़ुरबत सुकून नही पाता
बार- २ दोहराओ वादा-ए-इश्क़,तब तक उसे यकीन नही आता |
३. बैचेनियों के तूफान क्यों उठते है दिल में हर वक़्त
तेरी एक नज़र बस ,इत्मीनान से थम जाया करते है |
४. रात की नींद भी सुहानी बने जो तू ख्वाब में आ जाए
कोई सवाल मुश्किल नही ज़िंदगी का जो तू जवाब दे जाए |
५. तेरी मुस्कान को देख कर,हम भी रोज हंस लेते है
तुझ से बातें करने संगदिल मगर बहुत तरस जाते है |
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अप्रैल 9, 2008 at 6:12 पूर्वाह्न (ऐसी हर सहर जिए)
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ऐसी हर सहर कीजिए
नींद खुले देखूं तुम्हे ऐसी हर सहर कीजिए
दिल में छुपाए कुछ राज़ हमे खबर कीजिए |
पैगाम–ए–मोहोब्बत भेजा है खत में नाज़निन
कबुल हो गर तोहफा–ए–इश्क़ हमसे नज़र कीजिए |
खुशियाँ बाटने यहा चले आएँगे अनजान भी
किसी के गम में शरीक अपना भी जिगर कीजिए |
आसान राहों से जो हासिल वो भी कोई मंज़िल हुई
खुद को बुलंद करने तय मुश्किल सफ़र कीजिए |
दुश्मन–ओ–जहाँ के तोड़ रहे है मंदिर मज़्ज़िद
अपने गुनाहो की माफिए–ए–अर्ज़ अब किधर कीजिए |
लहू के रिश्तों से भी मिले अब फरेब ओ– खंजर
परायों से अपनापन नसीब वही बसर कीजिए |
ज़मीन समेट्ले बूँदो से वो बादल है प्यासा
आसमान झुके पाने जिसे प्यार इस कदर कीजिए |
गुलाब से सजाए लम्हे भी मुरझाएंगे कभी
यादों में उनकी “महक”रहे ऐसा असर कीजिए |
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मार्च 11, 2008 at 10:20 पूर्वाह्न (दीप तुम जलते रहना)
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नन्हे से दीपक में सजाई बाती
रौशनी चारों तरफ,निखरी हुई ज्योति
हर पल तप तप कर तुम हो जाना प्रखर
दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |
अंधेरी गलियों में जो हम भटक जाए
तेरे उजियारे से मन की प्रज्वलित हो आशायें
मुश्किलें आए तो साथ निभाना शाम–ओ–सहर
दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |
तूफानो के काफ़िले आएंगे गुजर जाएंगे
कोशिश होगी तुम बुझ जाओ,चुभेंगी हवायें
विश्वास के बल पर तय हो जीवन का सफर
दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |
अपने लौ को सदैव मध्यम ही जलने दो
प्रकाश पर खुद के कभी घमंड न हो
प्रेरणा बनो सबकी, दिखाना राह–ए–नज़र
दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |
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नवम्बर 29, 2007 at 9:54 पूर्वाह्न (nazron ke teer)
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नज़रों के तीर जब निकले कमान से
कितने दिल घायल होने को तैय्यार शान से
पर अपने चाँद का दीदार सबको करना या नही
ये हम तय करेंगे फिर कभी इत्मीनान से
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