राही हो सफ़र का बुलंद

राही हो सफ़र का बुलंद कदम मीलों चल गये
याद आते है अक्सर बीते खुशियों के पल गये |

तुमने लाख संभाला हमे उस चिकनी ढलान पर
ज़िद्द थी खुद सवारेन्गे मुक़द्दर और फिसल गये |

एक साथ जो समेटना चाहा आसमानी तारों को
जब मुट्ठी खोली देखा सब काँच में बदल गये |

हज़ारों नादानियों के बाद भी  हम साया बने रहे
आँचल को पकड़ कर  तेरी बच्चो से मचल गये |

तकदीर का हर पहलू बड़ा अजीब होता है ”महक
लंबी क्यों नज़र आए  सड़क जिधर निकल गये |