1.उठ उठ कर उँची आ जाती है किनारों पर ल़हेरें
मानती है उनको किनारों से गहरा प्यार है
लिपट कर वापस लौट जाती है चुपचाप सी
जानती है सच्चाई,सागर उनका असली संसार है. |
2.यूँही कभी मैं ख़याल कर जाउ
सोचती हूँ कोई ल़हेर बन पाउ
अथांग सागर में जीवन के उछलू
दूर से भी सबको नज़र आउ |
3.चंद्रमा सजीला
पौर्निमा की बहार
दरिया में हलचल
ल़हेरो की लगबग
सजी है आज
भरती की रात
होगी मिलन की बात
किनारो पर इंतज़ार था
प्यार के पूरे होंगे जज़्बात
कुछ पल की खुशियाँ
समेट लेंगी आचँल में
तनहाईयाँ बाटने
यादें ही काम आती है |
4.ल़हेरो को बेवजह क्यों बदनाम कर रखा है
के वो बेवक़्त तूफ़ानो का निमंत्रण लाती है
जब समंदर में राह से भटक जाए कश्ती
असीम ल़हेरें ही किनारों तक साथ देती है |