काजल

काजल

दीपक की बाती पर जल कर
आग की तपिश में पीघल कर
खुदको बनाया और सवारा हमने
काला रंग है कह कह कर
हमे मिटाया ,दर्द दिया सबने
मायूस हो गये हम फिर
ये हमे कैसा बनाया रबने
सबने हमे ठुकराया
अपने हाथ सफेद करने
हमे जगह जगह फैलाया
एक दिन नसीब ने बताया
तुमने हमे आँखों मे बसाया
एहसानमंद है तुम्हारे
हमारा इतना रुतबा बढाया
हम भी वादा करते है
तेरी आँखों में सदा रहेंगे
तेरे असुअन में हम भी बहेंगे
जब तू सजेगी सवरेगी
तेरी खूबसूरती को और निखारेंगे
जनमानस जब तुझे निहारेंगे
हम इतनी एहतियात लेंगे
किसी की तुम्हे नज़र ना लगने देंगे.