दिल के जज़्बात

   

 हाथों में उठाए काग़ज़ और क़लम
लिख देते है दिल के जज़्बातों को
खुद के  ही अल्फ़ाज़ कभी पक्के ,कभी कच्चे से लगते है |

कल्पनाओ को मन के नया रूप मिलता
जी लेते है अपने उन सिमटे ख्वाबों को
भावनाओ में बहेते तरंग कभी झूठे ,कभी सच्चे से लगते है |

अक्सर निकलती वो मोहोब्बत की बातें
कभी दोहराते मजबूत ,बुलंद इरादों को
हम चाहे जो भी लफ्ज़ पिरोए,मन  को अच्छे ही लगते है |

बहुत अरमानो से सजाते और सवारते है
बेंइन्तहा चाहते है अपनी कविताओं को
जैसे हर मा को सबमें खूबसूरत अपने बच्चे ही लगते है |