उस पलाश के नीचे

उस पलाश के नीचे

यादों में छिपाकर रखा है
वही अकेला पलाश के फूलों का पौधा
जो हम दोनो का साथी था
जहा हम मिलते दो अजनबी की तरह
मुस्कुरालेते,नज़रे मिलाते
पर कभी कुछ कह नही पाए
दो अनजान मुसाफिरो की तरह
बरबस पलाश को देखते रहते
वही किया करता फिर
हम दोनो की दिल की बाते
घंटो रुककर उसका संगीत सुनते
शाम ढलने पर फिर उसे अकेला छोड़ते
कल के मिलन के इंतज़ार में.
ज़िंदगी में कुछ अजीब मोड आए
और पलाश के फूल तन्हा हो गये
एक दिन हमने पूछी उसे तेरी खबर
पर वो गुमसूम ही खड़ा था
ना कुछ कहा,ना गीत गाया
मुझ संग रो पड़ा था
अब अक्सर आती हूँ मैं
फिर उस पलाश के नीचे
पलाश पर फूल खिलते है आज भी
पलाश के फूल महेकते है आज भी
हम दोनो तेरी राह देखते है आज भी
तेरे बिना मैं और पलाश के फूल अधूरे लगते है
तू आए तो फिर हम पूरे हो सकते है
सोचती हूँ क्या तुम हमे याद करते हो कभी
मेरी तरह तुम भी
पलाश की तरफ मुड़कर आते हो कभी?

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