झर झर शाख से झरती हुई पत्तियाँ
हर एक पे तेरा नाम लिखने की कोशिश करती हूँ
और तुम हसकर इसे हमारा बचपना कहते हो…..
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तोड़ी थी अनगिनत पत्तियाँ एक एक कर
उंगलियाँ भी दर्द से करहाती
तेरे प्यार की गहराई को नाप न सके मगर …….
अप्रैल 2, 2011 at 7:53 अपराह्न (त्रिवेणी)
झर झर शाख से झरती हुई पत्तियाँ
हर एक पे तेरा नाम लिखने की कोशिश करती हूँ
और तुम हसकर इसे हमारा बचपना कहते हो…..
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तोड़ी थी अनगिनत पत्तियाँ एक एक कर
उंगलियाँ भी दर्द से करहाती
तेरे प्यार की गहराई को नाप न सके मगर …….
दिसम्बर 6, 2009 at 3:29 पूर्वाह्न (त्रिवेणी)
Tags: bogan bel, khushbu, khushi, mogra
चाँदनी के फूलों से सजी मोगरे की डाली
झरते फूल हलके ही अन्जनी में समेटे
पूछ लिया पौधे ने ,कही तुम्हे चोट तो नही लगी?
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गुलाबी ,लाल रंगों की खिलखिलाहट
खुश्बू बस हम में खुशी ही है
ये बहार भी तेरे लिए,बोगन बेलिया चहकी
मार्च 14, 2009 at 1:48 अपराह्न (त्रिवेणी)
मार्च 29, 2008 at 5:25 पूर्वाह्न (त्रिवेणी)
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त्रिवेणी
1.लफ़्ज़ों का सज़ा कर नगमा हाल–ए–दिल सुनाया
उनके लबों की मुस्कान देख समझे हमने उन्हे मनाया
वाह वाह कह वो निकल गये हमे ग़लत फ़हमी हुई बताया
2.जाम हाथों में लिए वो पीते रहे रात भर
उनके साथ साथ हम भी नशे में है
निगाहों से पिलाने का यही असर होता है
3. ख्वाबो के पर लगा कर उड़ान भरली
ठिकाना तेरा ढूँढ ने में बड़ी देर कर दी
अब तो ना ज़मीन के रहे ना आसमान के.
4.दीवाना दिल मेरा जानता ही नही
तुझे मोहोब्बत नही हमसे ये मानता ही नही
इसको क्या सज़ा दूं तुम ही तय कर लो.
5.चाँद रोज तुम खिड़की से क्यूँ झाकते हो
साजन संग प्रीत छेड़ू तब क्यूँ निकलते हो
छुपने का इशारा न समझो इतने नादान तो नही हो.
मार्च 29, 2008 at 5:11 पूर्वाह्न (त्रिवेणी)
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त्रिवेणी
1.समय भागता रहा अपनी रफ़्तार से
कुछ पाने की जिद्द थी मैं भी भागती रही
खुद को ही बहुत अजनबी महसूस कर रही हूँ
2.हाथियों जितनी बड़ी खुरसियाँ बना कर
निरक्षर नेता बैठे उस पर
और पूरे देश का झूलुस निकालते है
3.टेबल के उपर फाइल का ढेर
टेबल के नीचे हाथों का हेर फेर
मिलकर रिश्वत का पेड़ लगा रहे है
4.मिलावट भरा राशन का सामान खरीदा
कुछ छूटे पैसे ज़्यादा मिले लौटाए नही वापस
थोड़ी बेईमानी हमने भी सिख ली है ज़माने से
5.पैसों का ढेर लगाओ मंदिर के द्वारे
सबसे पहले दर्शन हो गये हमारे
भगवान के पास भी वक़्त की कमी है
जनवरी 1, 2008 at 5:23 पूर्वाह्न (त्रिवेणी)
Tags: त्रिवेणी - अक्सर जाती, Blogroll, hindi poem, kavita, mehek, mehhekk, shayari, sher, three liner, triveni
त्रिवेणी – अक्सर जाती हूँ मैं उस कुए के पास
1.अक्सर जाती हूँ मैं उस कुए के पास
कंठ गीला करने जब लगती है प्यास |
पर और बढ़ती जाए तुझसे मिलन की आस ||
2.राह में मिल जाओ दौड़ती चली आउंगी
तुम्हारे प्यार की बाहो में सिम्मट जाउंगी |
दुनिया के रिवाज़ो को मैने माना ही कब है ||
3.पेड़ पौधो को बढ़ने दो , बहरने दो
हर फल,फूल, बगिया को खिनने दो |
अवनी को एक बार दुल्हन बनने दो ||
4.मुस्कुरालो अभी के यही वो पल है
केह्दो अभी दिल में कोई खलल है |
कल का भरोसा नही,जीवन क्षण भंगूर है ||