शब्दो का है निराला जहाँ
शब्दो का संसार बस्ता वहाँ
शब्दों के घर में,मे भी हूँ रहती
शब्दों के माध्यम से अपनी भावनाए कहती
शब्द कभी होते है फूलों से कोमल
शब्द कभी बन जाते,पत्थर से कठोर
शब्द कभी होते , जैसे शीतल सा झरना
शब्द कभी शोर,जैसे बारिश की बूँदो का गिरना
शब्द कभी आग और जलन बनकर आए
शब्द कभी लुभावनी हरीयाली बनकर छाए
शब्दो के मीठे सुर,सबको है प्यारे
शब्द जो दुख देते,हम करते उन्हे किनारे
शब्दों से सजाया तीर,संभलकर चलाना
शब्दों से हो घायल कोई,बन जाती दूरिया
शब्द हो ऐसे,जो हर दिल में खिल जाए
शब्द वहीं बोले, जो चीनी दूध सी मिठास लाए.
shabdh
नवम्बर 29, 2007 at 10:02 पूर्वाह्न (shabdh)
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