रोज़ सुबहः

रोज़ सुबहःघूमकर आने के बाद ,आंगन की सफाई और रंगोली निकालना बहुत अच्छा लगता है
नीले आसमान में लाल नारंगी छटाएँ, कभी तो पंछियों की किलबिल सुनाई देती है.

ज़मीन पर गिरी पेड़ की पतियों को साफ़ करते वक़्त ऐसा प्रतीत होता है मानों, मन के सारे बुरे ख्याल साफ़ हो रहे हो.
पतियों को जमाकर कचरा पेटी में डालू तब मन भी खूबसूरत लगने लगता है

छोटी हो या बड़ी रंगोली, उन में रंग भरते वक़्त ,हर रंग के साथ, अच्छे ख्याल मन में बस जाते है.
हम इंसान लाख अच्छे सही, पर है थो इंसान ही, अच्छे बुरे दोनों ख्यालों से ये मन भरा रहता है.
शायद कुछ लोग इसे स्वार्थी कहे, मगर आज कल हमने खुद से ज्यादा इश्क़ करना सिख लिया है. बस जब खुद से इश्क़ हो तो दूसरों से प्यार अपने आप हो जाता है./

1 टिप्पणी

  1. अप्रैल 1, 2019 at 8:32 पूर्वाह्न

    अदभुत सौंदर्य से भरपूर कविता


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