रघुकुल रीति सदा चली आई

बचपन के वो दिन थे कितने सुहाने
कुछ भी कीमत दूं वापस कभी ना आने
कितनी अजब गजब थी वो छोटी सी दुनिया
हक़ीक़त में जहा उड़कर आती परीयाँ
देवगन सारे अच्छे ,बुरे थे सारे दानव
बर्फ की होती राजकुमारी,साथ बूटे मानव
सात समंदर पार से राजकुमार आता
सफेद घोड़े पर बैठ राजकुमारी ले जाता

शाम को सारे बच्चे कहते नानी –
राजारानी से शुरू और उन्ही पे ख़तम कहानी
दीप जलते ही वो दीपम करोती सुनाती
कहानी के साथ कुछ अच्छी बाते सिखाती

बुरा कभी ना सोच किसिका,सदा बनो नेक
राम रहिम येशू नानक सारे ये है एक
जो भी खुद के पास है बाट कर खाना
कभी ख्वाब में भी किसी का दिल नही दुखाना

ये सारे अच्छे बोल नानी बार बार दोहराई
एक बात वो हमे गा बाँधकर समझाई
राम कहत रघुकुल रीति सदा चली आई
चाहे प्राण जाए पर वचन ना जाई

jaise soch wo hi dekhai de

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एकांत जगह,सुंदर वन में,घने हरे पेड़ के नीचे
हर एक पन्ने पर वाल्मीकि,रामायण की महान गाथा लिखते
जब वो राम गाथा अपने शिष्यों को कथन करते
अदृश्य रूप में हनुमान भी उसे श्रवण करने आते
सिताजी को अगवा कर रावण ने रखा था अशोकबन में
जब राम गाथा का,ये चरण चला
सिताजी के गम से,सब का हृदय हिला
जब वर्णन हुआ,जिस वृक्ष के नीचे सिताजी थी बैठी
उस वृक्ष के सारे फूल थे सफेद
हनुमान तुरंत असली रूप में आकर बोलें
वाल्मीकि यहाँ मुझे आपसे है मतभेद
याद है मुझे पक्का,चाहे बीते हो इतने साल
सफेद नही,उस वृक्ष के सारे फूल थे लाल
अपनी अपनी बात पर दोनो अड्डे
सुलझाने ये उलझन रामजी के सामने हो गये खड़े
रामजी बोलें,वो फूल थे सफेद,वाल्मीकि है सही
हनुमान तुम्हे सफेद फूल नज़र आयें लाल
क्योंकि तुम्हारा अंतर मण तब था गुस्से से भरा
मान के गुस्से का लाल रंग तेरी आँखों में था उतरा
हनुमान समझ गये रामजी की बातें
इस छोटे कथन से हम भी आओ कुछ सीखे
जैसी हमारी सोच होती,हुमे वोही देखाई दे
इसलिए अपनी सोच में,लाल गुस्सा नही,श्वेत की शीतलता रखे.