दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर

नन्हे से दीपक में सजाई बाती
रौशनी चारों तरफ,निखरी हुई ज्योति
हर पल तप तप कर तुम हो जाना प्रखर
दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |

अंधेरी गलियों में जो हम भटक जाए
तेरे उजियारे से मन की प्रज्वलित हो आशायें
मुश्किलें आए तो साथ निभाना शामसहर
दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |

तूफानो के काफ़िले आएंगे गुजर जाएंगे
कोशिश होगी तुम बुझ जा,चुभेंगी हवायें
विश्वास के बल पर  हो जीवन का सफर
दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |

अपने लौ को सदैव मध्यम ही जलने दो
प्रकाश पर खुद के कभी घमंड  हो
प्रेरणा बनो सबकीदिखाना राहनज़र
दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |

29 टिप्पणियां

  1. मार्च 11, 2008 at 10:57 पूर्वाह्न

    बहुत सुन्दर भाव…! प्रेरणादायक रचना है जो आशावाद का संचार करती है.

  2. मार्च 11, 2008 at 11:00 पूर्वाह्न

    मार्मिक भावनाएँ, खूबसुरत अभिव्यक्ति। बधाई।

  3. mehhekk said,

    मार्च 11, 2008 at 11:05 पूर्वाह्न

    meenakshi ji bahut bahut shukran

    mahamantri taslim ji bahut shukran aap ka bhi

  4. Rewa Smriti said,

    मार्च 11, 2008 at 12:06 अपराह्न

    अंधेरी गलियों में जो हम भटक जाए
    तेरे उजियारे से मन की प्रज्वलित हो आशायें
    मुश्किलें आए तो साथ निभाना शाम-ओ-सहर
    दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |

    Nice poem. Aapki poem padh Bachchanji ki ek poem yaad aa gayi ….mann ho to rahne dijiyega otherwise delete kar dena….

    अंधेरे का दीपक

    अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

    कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था,
    भावना के हाथ ने जिसमें वितानो को तना था,
    स्वप्न ने अपने करों से था रुचि से संवारा,
    स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगो से, रसों से जो सना था,
    ढह गया वह तो जुटा कर ईंट, पत्थर, कंकडों को,
    एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है?
    अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

    बादलों के अश्रु से धोया गया नभनील नीलम,
    का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम,
    प्रथम ऊषा की लालिमा सी लाल मदिरा,
    थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम,
    वह अगर टूटा हाथ की मिला कर दोनो हथेली,
    एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है?
    अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

    क्या घडी थी एक भी चिंता नहीं थी पास आई,
    कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छायी,
    आंख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती,
    थी हंसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खायी,
    वह गई तो ले गई उल्लास के आधार माना,
    पर अथिरता की समय पर मुस्कुराना कब मना है?
    अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

    हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा,
    वैभवों से फेर आंखें गान का वरदान मांगा
    एक अंतर से ध्वनित हो दूसरे में जो निरन्तर,
    भर दिया अंबर अवनि को मत्तता के गीत गा गा,
    अंत उनका हो गया तो मन बहलाने के लिये ही,
    ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है?

    अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

    हाय वे साथी की चुम्बक लौह से जो पास आये,
    पास क्या आए, कि ह्र्दय के बीच ही गोया समाये,
    दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर,
    एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए,
    वे गए तो सोच कर ये लौटने वाले नहीं वे,
    खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है?
    अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

    क्या हवांए थी कि उजडा प्यार का वह आशियाना
    कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना,
    नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका?
    किंतु ऎ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना,
    जो बसे हैं वे उजडते हैं प्रकृति के जड नियम से
    पर किसी उजडे हुए को फिर बसाना कब मना है?
    अंधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?

  5. mehhekk said,

    मार्च 11, 2008 at 12:18 अपराह्न

    rews sarahana aur kavita dono ke liye bahut hi shukran,itni khubsurat kavita bhala koi delete karta hai kya,thanks alot.aapki vajah se hume itni achhi kavita padhne mili.

  6. मार्च 11, 2008 at 1:48 अपराह्न

    Tum you hi deep jalaate rahana kabhi Alavida n kahana bahut badhiya

  7. मार्च 11, 2008 at 2:31 अपराह्न

    अपने लौ को सदैव मध्यम ही जलने दो
    प्रकाश पर खुद के कभी घमंड न हो
    प्रेरणा बनो सबकी, दिखाना राह-ए-नज़र
    दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |
    —————————
    bahut badhiya

  8. मार्च 11, 2008 at 5:04 अपराह्न

    बहुत खूब महक जी!

  9. mehhekk said,

    मार्च 11, 2008 at 6:06 अपराह्न

    mahendraji bahut shukriya sarahana ke liye

    deepak ji bahut aabhari hun

    dr.anil ji bahut shukran

  10. MEET said,

    मार्च 11, 2008 at 6:43 अपराह्न

    Well said. Good one.

  11. ajaykumarjha said,

    मार्च 12, 2008 at 6:19 पूर्वाह्न

    achhe rachna.

  12. mehek said,

    मार्च 12, 2008 at 10:47 पूर्वाह्न

    meet ji thanks a lots

    ajay ji bahut shukrana

  13. anurag arya said,

    मार्च 12, 2008 at 1:25 अपराह्न

    is kavita ko padhkar aapki bhavnaye kuch kuch samajh aati hai…..sundar kavita hai.

  14. rashmi prabha said,

    मार्च 12, 2008 at 5:42 अपराह्न

    प्रेरणा बनो सबकी, दिखाना राह-ए-नज़र ……..
    jalte deepak se yah iltazza prernadayak hai

  15. मार्च 13, 2008 at 2:49 पूर्वाह्न

    अपने लौ को सदैव मध्यम ही जलने दो
    प्रकाश पर खुद के कभी घमंड न हो
    प्रेरणा बनो सबकी, दिखाना राह-ए-नज़र
    दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |

    अति सुन्दर ,”प्रकाश पर खुद के कभी घमंड न हो”

  16. mehhekk said,

    मार्च 13, 2008 at 6:02 पूर्वाह्न

    anuraag ji bahut aabhari hun

    rashmiji bahut bahut shukran

    vikramji shukriya,hum hamesha yaad rakhenge.

  17. मार्च 13, 2008 at 6:07 अपराह्न

    एक बहुत अच्छी रचना । बधाई

    महक जी क्या आपसे ‘होली’ पर एक कविता की उम्मीद कर सकते है यदि हा तो काव्य प्ल्लवन मे अव्श्य भेजे।

  18. मार्च 13, 2008 at 6:14 अपराह्न

    बहुत सुंदर रचना है।

    तूफानो के काफ़िले आएंगे गुजर जाएंगे
    कोशिश होगी तुम बुझ जाओ,चुभेंगी हवायें
    विश्वास के बल पर तय हो जीवन का सफर
    दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |
    वाह!

  19. mehhekk said,

    मार्च 13, 2008 at 6:41 अपराह्न

    klal sir ji bahut hi shukriya sarahana ke liye.

    mahavir sirji,aaj hum bahut khush hai,aap hamare blog par aaye,bahut bahut shukriya.

  20. Tanu Shree said,

    मार्च 18, 2008 at 11:25 पूर्वाह्न

    अपने लौ को सदैव मध्यम ही जलने दो
    प्रकाश पर खुद के कभी घमंड न हो
    प्रेरणा बनो सबकी, दिखाना राह-ए-नज़र
    दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |

    Ek seekh deti hui kavita…bohot pyari hai… 🙂

  21. kuldeep said,

    मार्च 20, 2008 at 8:12 अपराह्न

    bahut achchha likhati hai aap 🙂

  22. ria sacheti.. said,

    जनवरी 10, 2010 at 3:50 पूर्वाह्न

    wowwwwwwwww!!!!!!!!!!!!!!
    what a creation…….
    EXCELLENT YAAR !!!!!!!!!!

  23. फ़रवरी 22, 2013 at 9:27 पूर्वाह्न

    नन्हे से दीपक में सजाई बाती
    रौशनी चारों तरफ,निखरी हुई ज्योति
    हर पल तप तप कर तुम हो जाना प्रखर
    दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |

    अंधेरी गलियों में जो हम भटक जाए
    तेरे उजियारे से मन की प्रज्वलित हो आशायें
    मुश्किलें आए तो साथ निभाना शाम-ओ-सहर
    दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |

    तूफानो के काफ़िले आएंगे गुजर जाएंगे
    कोशिश होगी तुम बुझ जाओ,चुभेंगी हवायें
    विश्वास के बल पर तय हो जीवन का सफर
    दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |

    अपने लौ को सदैव मध्यम ही जलने दो
    प्रकाश पर खुद के कभी घमंड न हो
    प्रेरणा बनो सबकी, दिखाना राह-ए-नज़र
    दीप तुम जलते रहना यूही निरंतर |

  24. reena jaiswal said,

    मार्च 5, 2013 at 8:13 पूर्वाह्न

    REALLY INSPIRING. MAI APNI EK KAVITA BHEJ RAHI HU PASAND AE TO REPLY KARNA,

    JADDOJAHAD

    EK JADDOJAHAT APNE AAPSE,
    EK SAPNA, UMMID AUR HOSLA,BARKARAR RAKHNE KA.
    EK BHAROSA APNE AAP PER,
    APNE APNO PER,
    EK WISHWAS,APNE BHAGWAN PER,
    EK NIRASHA, BAAR BAAR TUTNE KI,
    EK AASHA BAAR BAAR UTHKAR KHADE HO JAANE KI,
    NAM ANKHE HATASH DIL,
    ROTA HAI ,CHIKHTA HAI,JHUNJLATA HAI,
    PHIR UTH KHADA HOTA HAI,
    UTNI HI DRADTA KE SAATH,
    EK VISVAAS KE SAATH,
    KI SAPNE DEKHNE KA HAK HAME BHI HAI,
    UNHE PURA KARNE KI JID HAMME BHI HAI,

    KUNKI KISMAT HAATHO KI LAKIRE NAHI HOTI,
    KISMAT VO HOTI HAI,
    JO HUM ,HAMAARI SOCH,AUR HAMAARA KARM BANATA HAI, KUNKI KARM KARKE PHAL KI AASHA RAKHNA HI,
    HAME NAE SAPNE BUNNE KI RAAH DIKHATA HAI.

  25. dr. sunil modak said,

    अक्टूबर 24, 2016 at 1:31 पूर्वाह्न

    शब्द काम है भावना को व्यक्त करणे को….इतनी सुंदर कविता है.


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