बूंदो की खनक में

 

बूंदो की खनक में
 ढूँढती हूँ अक्सर
वो छुपा हुआ अक्स तेरा
तुम भी जब खिलखिलाते
जैसे छम छम बूंदे
बजती थी |

बरसात की बूंदे
हथेली पर् लेकर
एक कोशिश करती हूँ
उन्हे छुपाने की
ताकि बहते पानी संग
तुम भी न बह जाओ |

बूँद में तुम्हे देखना
खयाल अच्छा लगता है
जितनी बूंदे होती है
तेरी उतनी ही तस्वीरे |

बारिश तेरा आना

 

आधी रात

सितारों की बारात

मेघ बने घोड़े

बदरा आए दौड़े दौड़े

बिजली की थिरकन

हवाओ में कंपन

कही अपने आप बजते

बासुरी के स्वर

कही यूही गुनगुनाते

हौले से अधर

अनगिनत अरमान बाहों में

कितने ही मोती खयालो में

छम छम सी बूंदाबांदी

बिखरे दिल की ख्वाहिश

भीगे हुए से हज़ारों

ख्वाबों की आजमाइश

पहले से तय होता

ये हमने माना

पर् हर बार नया सा लगता

बारिश तेरा आना…..

बरसाती ख़याल कुछ यू भी

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मेघा आज फिर टुटके बरसे तुम मीत से
माटी से ‘महक’ ऊठी , इश्क में सराबोर निकली |

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ये क्या हुआ ‘महक’, दीवानगी की सारी हदे पार कर ली
सावन में बरसी हर बूँद तुने,अपने अंजुरी में भर ली |

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मौसम खुशनुमा , फ़िज़ायें भी ‘महक’ रही
तेरा नाम क्या लिया, फूलों की बरसात हुई |

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सावन की फुहार से ’महक’ बावरी हुई
बूंदो  के झुमके  पहन भीग रही छत पे |

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बारिश की लड़ी से नव पल्लवित रैना
इंद्रधनु के रंग उतरे ‘महक’  के  नैना |

उमस भरी दोपहरी में

उमस भरी दोपहरी में
गर्मी की चादर ओढ़े धूप टहल रही थी
वो बादल का टुकड़ा आया
झाक के देखा उसने, आँखों के सूखे मोती
दौड़ा भागा , कुछ आवाज़ लगाई
लू से भारी हवा ठंडक बन लहराई
छाव का शामियाना धरा पर सज़ा
हज़ारों बादलों का जमघट जो लगा
टापुर टापुर बूंदे बड़ी बड़ी झूमको सी
राह पर गिरती , माटी से मिलती
खिड़की खुलने से पहले ही
नयनो के रास्ते मन बाहर था
आवारा बरसातो में भीगता
धूल गया पूरा के पूरा
चमकता नयी कोरी स्लेट सा
नयी हरियाली के उगम में
खुद को समेटता……….

इन फूलों की बारिश में

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इन फूलों की बारिश में
भीग लेते है हम भी
मोहोब्बत के इत्र की महक
जरा बदन पर चढा लूँ
अगले मौसम तक फिर
ये ताजगी रहेगी मन में .
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रिझाने प्रियतम फूल को,गुनगुनाया,बहलाया
खिली हर पाखी जब नाजुक प्रेम स्पर्श सहलाया
जज्बातों में बह के अपना मधुरस दे बैठा
मेरी मन तितली तो बस खुशबु की दीवानी है |

ye chitra humne kisi ke blog se liya hai,blog ka naam yaad nahi,unka shukran.

शाम सुहानी सी

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शाम सुहानी सी

धूप की चादर को हटाकर बिखर गये नीले स्याह से बादल
गरजत बरसात बूँदों का आना ,गालों पर सरका आँख का काजल |

ठंडी हवाओं का नज़दीक से गुज़रना नस नस में दौड़ती सहर
आँधियों का हमे अपने आगोश में लेना दिल में उठता कहेर |

उसी राह से हुआ तेरा आगमन ,एक छाते में चलने का निमंत्रण
नज़दीकियों में खिला खिला मन फिर भी था खामोशी का अंतर |

यूही राह पर कदम चले संग तुम्हारे कभी ना आए वो मंज़िल
बड़ी अजीब सी चाहत ,ख्वाब होते गजब के जो इश्क़ में डूबा हो दिल |

दरवाज़े तक तेरा हमे छोड़ना और मुस्कान में कुछ कोशीशन कहेना
समझ गया दिल वो अनकहे अल्फ़ाज़ और चलते हुए तेरा तोडसा रुकना |

हमशी  कह दू राज़ की बात ,ज़िंदगी की सब से थी  वो शाम सुहानी सी
रब्बा  शुक्रा में जीतने सजदे करूँ कम है उस  वक़्त तूने दुआ कबुल की |

बादल मितवा

राह देखे मन प्रतिपल हर क्षण
ढूँढे तुझे मेरा बिखरा कन कन

नही सुने जाते जमाने के ताने
उस पर  आने के तेरे लाख बहाने

आँखें है बंजर ,कैसे नीर बहाए
सुलगती किरने आकर तनमन जलाए

तुझसे मिलने करूँ सागर का मंथन
धरा हूँ , मुझे है उड़ने का बंधन

ब्रम्‍हांड में पूरे तेरा है विस्तार
मुक्त अकेला ही करता है विहार

सुन रहे हो क्रंदन मत सता रे
कुछ लम्हो की साँसे अब तो आरे

मोहोब्बत का वास्ता तुझे धड़कन पुकारे
बादल मितवा प्यार की बूंदे बरसा रे.